वे भ्रष्टाचारी हैं भ्रष्टों से अनुबंधित हैं,
भ्रष्टाचार के जितने भी प्रकार हैं सबसे संबंधित हैं।
वे राजनीति में थे शक्तिपुंज,
बदले हालातों में हो गये हैं लुंज-पुंज।
लोकतंत्र के मेले में जनादेश खंडित है।
भलों से रखते थे दुराव,
बुरों का करते थे बचाव।
वे कर पायेंगे अपनी रक्षा आशंकित हैं।
राजाज्ञाओं की बनाते रहे रद्दियाँ,
कानून की उड़ाते रहे धज्जियाँ।
वे अपनी आत्म प्रताड़ना से दंडित हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
भ्रष्टाचार के जितने भी प्रकार हैं सबसे संबंधित हैं।
वे राजनीति में थे शक्तिपुंज,
बदले हालातों में हो गये हैं लुंज-पुंज।
लोकतंत्र के मेले में जनादेश खंडित है।
भलों से रखते थे दुराव,
बुरों का करते थे बचाव।
वे कर पायेंगे अपनी रक्षा आशंकित हैं।
राजाज्ञाओं की बनाते रहे रद्दियाँ,
कानून की उड़ाते रहे धज्जियाँ।
वे अपनी आत्म प्रताड़ना से दंडित हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा