Friday 9 December 2016

ऐसे कैसे तुम जाओगे

ऐसे कैसे तुम जाओगे!
नहीं हुआ अभी तक कुशल क्षेम,
नहीं हुई कोई बात। 
नहीं कही अपनी नहीं सुनी हमारी,
दुख के कैसे झेले झंझावत।
बिना कहे मन की पीड़ा को,
ऐसे ही ले जाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।
कहते हैं कहने सुनने से,
दुख कम हो जाते हैं।
जीने का हौसला बढ़ जाता है,
गम बेदम हो जाते हैं।
अपनी ब्यथा कथा का सहभागी,
हमको नही बनाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।
माना कोई कुछ कर नही सकता है,
दुख के क्षण कम कर नही सकता है।
दुखियों की सान्त्वना को,
कुछ कह तो सकता है।
दुख में है सब साथ तुम्हारे,
इस अहसास से संबल तुम पा जाओगे.........ऐसे कैसे,,,,,,,,।  
मत चुप बैठो कुछ तो बोलो,
बनो नही घुन्ना ग्रन्थि मन की खोलो।
बिखरा दो संचित दुख को,
कष्टों के मार से हल्के हो लो।
हल्के हो कर उड़ों गगन में,
पार दुखों से पा जाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा         

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