Friday 23 December 2016

मेरे दिल की लगी आग को

मेरे दिल की लगी आग को आंचल से हवा दे दी,
बीमार विस्मिल यार को मरने की दवा दे दी।
             तुम्हारे तंग दिली का नहीं था पता,
             हम मर मिटे नजरें मिलाने पर।
             सलीव पर लटका दिया दिल अपना,
             तुम्हारे मुस्कराने पर।
तुम संग कर मुहब्बत हमने,
अपने दिल को सजा दे दी.................. मेरे दिल...............।
             मामूल पर थी जिंदगी,
             नहीं कोई झमेला था।
             था जिंदगी में अमन चैन,
             खुशियों का मेला था।
तुम्हारी देख कर सूरत,
मेरे दिल ने दगा दे दी.................. मेरे दिल...............।
             हम जुल्म अपने आप पर करते रहे,
             तुम्हारी बेरुखी से रोज जीते रहे मरते रहे।
             उम्मीदों का जला कर दिया,
             रोशन दिल अपना करते रहे।
किया तुम पर भरोसा,
बस यही थी खता मेरी.................. मेरे दिल...............।
             हमें तुमसे मुहब्बत है नहीं इन्कार करते हैं,
             तुमसे इश्क का इजहार हम सौ बार करते हैं।
             हम प्यार करने वाले नहीं,
             अंजाम की परवाह करते हैं।
हँसते हुये सह लूँगा यह दुनियाँ,
जो भी सजा देगी.................. मेरे दिल...............।

जयन्ती प्रसाद शर्मा                           

Friday 9 December 2016

ऐसे कैसे तुम जाओगे

ऐसे कैसे तुम जाओगे!
नहीं हुआ अभी तक कुशल क्षेम,
नहीं हुई कोई बात। 
नहीं कही अपनी नहीं सुनी हमारी,
दुख के कैसे झेले झंझावत।
बिना कहे मन की पीड़ा को,
ऐसे ही ले जाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।
कहते हैं कहने सुनने से,
दुख कम हो जाते हैं।
जीने का हौसला बढ़ जाता है,
गम बेदम हो जाते हैं।
अपनी ब्यथा कथा का सहभागी,
हमको नही बनाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।
माना कोई कुछ कर नही सकता है,
दुख के क्षण कम कर नही सकता है।
दुखियों की सान्त्वना को,
कुछ कह तो सकता है।
दुख में है सब साथ तुम्हारे,
इस अहसास से संबल तुम पा जाओगे.........ऐसे कैसे,,,,,,,,।  
मत चुप बैठो कुछ तो बोलो,
बनो नही घुन्ना ग्रन्थि मन की खोलो।
बिखरा दो संचित दुख को,
कष्टों के मार से हल्के हो लो।
हल्के हो कर उड़ों गगन में,
पार दुखों से पा जाओगे..................ऐसे कैसे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा