Sunday 26 June 2016

पापी पेट का सवाल है

पापी पेट का सवाल है पापी पेट का सवाल है।
        न होता अगर पेट पापी,
        न मांगती भीख सोना
        न काटता जेब पप्पू,
        न नाचती महफिल में मोना।
पेट की खातिर बन गया भीखू,
कोठे का दलाल........................... पापी पेट का........... ।
        पापी पेट की आग से, 
        पशु पक्षी भी जल रहे हैं।
        तोता, मैना, बन्दर, भालू 
        सर्कस में खेल कर रहे हैं।
भूखे पेट शेर और हाथी,
दिखा रहे रिंग में कमाल................ पापी पेट का........... । 
        भूखे आकर राजनीति में,
        खूब खाते हैं ।
        फिर भी नहीं अफरते,
        पेट इनके बढ़ते जाते हैं।
कोई उठा देता है ऊँगली,
करवा देते हैं बवाल...................... पापी पेट का........... । 
        कुछ खा गये भैंसों का चारा,
        कुछ ने डकारे तेल में।
        कुछ ने दिखाई कला बाजियां,
        खा गये अरबों खेल में । 
नहीं शरमाते भ्रष्टाचारी,
उनको नहीं होता मलाल................ पापी पेट का........... । 

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Tuesday 7 June 2016

चिलचिलाती दुपहरी में

चिलचिलाती दुपहरी में,
आग बरसाती तिजहरी में।
मैं झूम-झूम जाता था-
क्योंकि वह मेरे साथ थी।
                    खार फूल लगते थे,
                    नजारे अनुकूल लगते थे।
                    मैं हँसता था मुस्कराता था,
                    क्योंकि उस मिलन की अलग बात थी।
चन्दा की चाँदनी,
लगती थी सुहावनी।
हम नाँचते थे गाते थे-
क्योंकि वस्ल की वह रात थी।
                     कुछ बात ऐसी हो गई,
                     वह मुझसे दूर हो गई।
                     बदल गये नजरिया नजारे-
                     क्योंकि वह बेबफा नहीं पास थी।

जयन्ती प्रसाद शर्मा