Wednesday 25 May 2016

कहाँ गये मन के कोमल भाव

कहाँ गये मन के कोमल भाव!
वृद्धावस्था जानकर मेरी,  
शायद करते हैं मुझसे दुराव.................. कहाँ गये...।
           मैं अब भी दुखियों के मन को, 
           अच्छी बातों से बहलाता हूँ।
           उनके टीसते घावों को,
           अपने हाथों से सहलाता हूँ।
पर लगता है कर रहा हूँ अभिनय,
नहीं मन से हो पाता जुड़ाव .................. कहाँ गये...।
          बच्चों की खिलखिलाहट भरी हँसी,
           नहीं मन की कली खिलाती है।
           मेरे मन की कुंठा मेरे,
           भावों पर हावी हो जाती है।
बहुतेरा मन समझाता हूँ,
पर नहीं हटता उसका प्रभाव  .................. कहाँ गये...।
           नहीं नैसर्गिक सुषमा से,
           मन मेरा हरषाता है।
           सुन्दर नारी के दर्शन से,
           नहीं तन पुलकित हो पाता है।
दिल में नहीं होती है हलचल,
नहीं प्रेम रस का होता रिसाव.................. कहाँ गये...।
           काश ऐसा कुछ हो जाये,
           ह्रदय उल्हास से भर जाये।
           जाग उठे मन में उमंग,
           दूर निराशा हो जाये।
आजायें मन में भावों की बाढ़,
बढ़ जाये नेह रस का बहाव .................. कहाँ गये...।

जयन्ती प्रसाद शर्मा                     

Friday 13 May 2016

आओ दुख मेरे जीवन में आओ

आओ दुख मेरे जीवन में आओ,
तुम व्यापो मुझको नहीं दया दिखलाओ।
बड़े सुहाने होते हैं सुख के क्षण,
तपिश दूर करते हैं तत्क्षण।
हर लेते हैं तन मन की पीड़ा-
शुष्क हो जाते हैं मन के ब्रण।
पर पल भर को देते हैं साथ, तुम चिर साथी बन जाओ.......आओ............।
मैं अपने सुख के लमहों में भूल गया औरों का गम,
देख अश्रु किन्हीं आँखों में नहीं हुई ये आँखें नम।
नहीं फूटे सांत्वना के सुर मुख से-
संवेदना हो गई है कम।
तुम टीसो मेरे घाव नहीं सहलाओ.......आओ...........।
नहीं बुहारो पथ ऐसे ही जाने दो,
नहीं बिछाओ फूल पांव में कांटे चुभ जाने दो।
जो नहीं कर सके कोई घर रोशन-
ऐसे दीपों को बुझ जाने दो।
दुखिओं के संग रो लेने दो नहीं चुपाओ.......आओ............ ।
सुख में जो घेरे रहते हैं भाग वे दुख में जाते हैं
सच्चे शुभचिंतक ही दुःख में साथ निभाते हैं।
दुख के बाद ही आते हैं सुख के पल-
लोग पता नहीं दुख से क्यों घबराते हैं।
दुखों का स्वागत करो, नहीं डराओ.......आओ........... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा .