Thursday 24 March 2016

बाज रहे ढोल ढप

बाज रहे ढोल ढप,
बाज रही चंग।
खेल रहे होरी श्याम,
राधा जी के संग।
              संग लिये ग्वाल बाल,
              आये नंदलाल।
              अंटी में रंग लाये,
              मुटठी में गुलाल।
              मन में नेह भरौ,
              अंखियन में उमंग............... खेल रहे............. ।
कान्हा के मन उठी उचंग,
राधिका पै डारौ रंग।
सात रंग कौ लहँगा भीजौ
चूनर भीगी पचरंग।
पिचकारी की सम्मुख फुहार से,
चोली भई तंग............... खेल रहे............. ।
              नाँच रहे ग्वाल-बाल,
              गोपिन को रिझाई रहे
              कर रहे खींच तान-
              और शोर मचाय रहे।
              ग्वालिनों पर रंग डार,
              कर रहे हुरदंग............... खेल रहे............. ।
गोपियों ने घेरे श्याम,
रंग दियौ तन तमाम।
बेकार सब रंग गये,
श्याम श्याम ही रहे।
उनके कारे अंग पै,
चढ़ौ न कोई रंग............... खेल रहे............. ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 


चित्र गूगल से साभार 


Tuesday 22 March 2016

होली मिलने मिलाने का त्योहार है

होली मिलने मिलाने का त्योहार है,
हिल मिल कर मनाइये।
अपनों को ठुकराकर,
औरों को अपनाकर-
नहीं दिल उनका जलाइये...... होली मिलने......... ।

होली की धूम में,
मचता है हुरदंग।
उड़ते हैं अबीर गुलाल,
बरसते हैं रंग।
भंग में रंग, रंग में भंग पड़ने से बचाइये...... होली मिलने......... ।

हुरियारे का आप पर,
लग गया ठप्पा।
गाइये ठुमरी या गाइये टप्पा।
गुन गुनाइये मिलन की रागिनी,
नहीं बिहाग सुनाइये...... होली मिलने......... ।

ख़ुशी का दिन है नाचो और झूमो,
चाहे किसी के गले लगो चाहे जिसे चूमो।
उड़ाओ गुलाल,
करके रंगों की बरसात,
सबको सतरंगी बनाइये...... होली मिलने......... ।

खुला रख दर,
खुला रख दिल।
भूल कर गिले शिकवे,
आज सबसे मिल।
करिये न भेद भाव सबसे मिलिये मिलाइये...... होली मिलने......... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा   



चित्र गूगल से साभार 
                 

Sunday 6 March 2016

गाय महिमा

है गाय हमारी अस्मिता,
उसका धर्म-कर्म से नाता है।
नहीं गाय को पशु मानो,
वह हम सबकी माता है।
              माँ नहीं जिसको दूध पिला सकती है,
              वह गाय के दूध से पलता है।
              होने से पौष्टिक और सुपाच्य,
              बच्चे को समुचित बल मिलता है।
दिल दिमाग होता है दुरुस्त,
शरीर पुष्ट हो जाता है..........नहीं गाय को......................... ।
             पंच गव्य के प्रतिदिन प्रयोग से,
             जीवन में शुचिता आती है।
             मनुष्य स्थिर प्रज्ञ हो जाता है,
             मन की भटकन रुक जाती है।
वह सोचने लगता है भला-भला,
भद्र पुरुष कहलाता है..........नहीं गाय को........................... ।
             गाय के शरीर में है-
             कोटिश देवों का वास।
             उसकी सेवा से मिल जाता है,
             सब देवों का अनुग्रह अनायास।
अन्त समय जीव की मुक्ति को,
गौदान कराया जाता है..........नहीं गाय को...........................।
             गोवंश के संबर्धन को,
             गौ को संरक्षित करना होगा।
             उसकी सुरक्षा को उसको,
             राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा।
गाय की सेवा के कारण ही नन्द लाला,
गोपाला कहलाया जाता है..........नहीं गाय को........................... ।
                              
 जयन्ती प्रसाद शर्मा