Saturday 30 January 2016

एक अन्वेषण

तुम्हारे कुशल प्रबंधन ने,
बना दिया है स्वर्ग- 
और तुमने इसकी प्रशस्ति भी पाई है।
मैं स्वर्ग वासी होना नहीं चाहता।
तुम नितांत पत्नी ही बनी रहीं,
मुझे भी बनाये रखा पतिदेव।
मुझे देवत्व स्वीकार्य नहीं है।
मैंने जब भी मिलाने चाहे नयन,
तुम अवनत ही देखती रहीं।
मैं तुम्हारी चंचल चितवन का आकांक्षी था।
तुमने भोगने दिया है अपने आप को-
बन्दिशों व हिदायतों के बीच।
मैं मुक्त साहचर्य का अभिलाषी था।
मैंने जब भी किया है प्रयत्न तुममें खोजने को प्रणयिनी,
तुमने कर दिया पहलू बदल कर विरोध-
और कठोर मन परिणयिनी ही बनी रहीं।
क्या यह मेरा दुराग्रह था?
मैंने तुम्हारे सर्द व्यवहार का नहीं किया मुखर विरोध-
बचने को लंपटता की लांछना से।
मैं पिसता रहा हूँ अपनी उन्मुक्त प्रेम की लालसा-
और तुम्हारी निर्लिप्तता के पाटों के बीच।
यह विडम्बना ही तो है।
आज जब खोज लिया गया है ईश्वरीय कण हिग्स बोसोन,
मेरा असफल अन्वेषण तुममें प्रीतिकण खोजने तक ही-
सीमित रहा है।
क्या मैं उपहास का पात्र नहीं बन गया हूँ?
जयन्ती प्रसाद शर्मा   

Saturday 23 January 2016

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

परतंत्र भारत देश के कटक उड़ीसा संभाग में,
जन्मे सुभाष चन्द्र, जानकी नाथ के परिवार में।
1897 का 23 जनवरी दिन था खास,
माँ प्रभावती के गर्भ से जन्मे वीर सुभाष।

सब कुछ था हर रोज जैसा,
ना कुछ ऐसा ना कुछ वैसा।
वायु यों ही चल रही थी,
सबसे सुन-सुन कह रही थी।

गीत ख़ुशी के गाओ सब–
मत हो ओ कोई उदास.... .... माँ प्रभावती के .. ...।

चमकीला सूरज चमक रहा था,
आसमान में दमक रहा था।
चहक रहे थे पक्षी वैसे ही,
फूल खिले हर दिन जैसे ही।

फिर भी हर मन में जागा था–
एक अलग उल्हास ... ... माँ प्रभावती के ... ...।

माँ प्रभावती थीं सौर भवन में,
पिता सहन में अति आतुर थे मन में।
कोई बच्चे के रंग रूप से अवगत उन्हें कराये,
लग्नादि की गणना कर उसका भाग्य बताये।

बच्चे के जन्म के फलादेश का, 
करवाये आभास माँ प्रभावती के ... . ।

सन्यासी एक अचानक वहाँ पर आये,
व्यग्र देख पिता को सुन्दर वचन सुनाये। 
“बड़ा यश्वस्वी तेरा यह बालक होगा,
प्रखर देश भक्त और जन जन का नायक होगा।

होगा सत्य वचन यह मेरा-
कर मन में विश्वास’... .. माँ प्रभावती के ... ... ।

जय नेताजी, जय हिन्द।

जयन्ती प्रसाद शर्मा


Monday 11 January 2016

मेॆघ दूत

बदरा कारे जारे, 
खबर साजन को दे आ रे।
बीतती जागते रैन, 
नहीं उन बिन पड़ता चैन।
बदन जलाती शीतल चाँदनी, 
नेह जल बरसा रे..........बदरा कारे.........।
बेदर्दी पिया,
तरसे जिया।
मन है विकल,
न कर आज कल चला आ रे...........बदरा कारे.......।
पंख मैं जो पाती,
उड़ कर चली आती। 
मैं का करूँ जतन,
आकर बता जा रे..........बदरा कारे........।
लगन तुमसे लगी,
मैं तुमने ठगी।
मुझको तुम बिन,
कुछ नहीं सुहाता रे........बदरा कारे.........।

जयन्ती प्रसाद शर्मा