Wednesday 30 September 2015

परामर्श

पता नहीं वे मेरी कमियों का ढिंढोरा क्यों पीटना चाहते हैं। 
उस दिन उन्होंने दे दिया परामर्श–
दूर दृष्टि अपनाने का।
शायद उन्हें पता नहीं मैं दृष्टि बाधित हूँ,
और पास का भी मुश्किल से–
देख पाता हूँ 
उनका उच्च विचार का सुझाव भी समझ से परे है।
मैं एक औसत कद का व्यक्ति हूँ।
किसी उच्चता के लिए मुझे कितना प्रयास करना पड़ेगा, उचकना पड़ेगा-
विचारणीय है।
बड़े दिल वाला बनने के लिए उन्होंने बड़े मासूमियत से कह दिया।
मैं अपने अस्सी सेंटीमीटर सीने में बड़ा दिल कैसे समाहित कर पाउँगा–
यह सोच कर बैठने लगता है मेरा छोटा सा दिल।
भारी भरकम होने की सलाह भी बे मानी है।
सामान्य कद का मेरे जैसा व्यक्ति भारी भरकम होकर–
चलने फिरने से हो जायेगा मजबूर और लुढकने लगेगा गेंद जैसा। 
मैं सोचता हूँ मैं जैसा भी हूँ, वैसा ही ठीक हूँ। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 17 September 2015

मन मयूर मम नृत्य करत

मन मयूर मम नृत्य करत!
घूमत मगन मन चक्रत–चक्रत,
सँभल-सँभल पग–
धरणी पर धरत ........ मन मयूर मम .....।
         छनन-छनन छूम छनन-छनन छन,
         घंघरू सौ छन छनात मन।
         घनन घनन घूम घनन घनन घन,
         घंटा सौ घन घनात मन।
नीरवता को हरत .......मन मयूर मम ......।
         पंख पसार छटा बिखरावत,
         मन-हर वातावरण बनावत।
         सब जग नीकौ नीकौ लागे,
         मंद मंद मम मन मुसकावत।
जीवन लगत सरस ......मन मयूर मम .......।
         नृत्य करत मन ताता थैया,
         घूम घूम कर ले घुमकैया।
         छायौ आनन्द मन-उपवन में,
         हूम-हूम कर ले हुमकैया।
मन में मोद भरत ......मन मयूर मम ......।
         तिरकिट धिरकिट धूम, धूम,
         रह्यौ मस्ती में झूम, झूम।
         अति उछाह मन में भरयौ, 
         चाहता है उछल कर गगन चूम।
रह्यौ बहुत ही हरष ......मन मयूर मम ......।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

                 
                 चित्र गूगल से साभार

Wednesday 2 September 2015

जब ख़याल तुम्हारा दिल में आता है,

जब खयाल तुम्हारा दिल में आता है,
पता नहीं मुझको क्या हो जाता है।
दिल करता है आसमान में उड़ जाऊँ,
चाँद सितारे तोड़ जमीन पर ले आऊँ।
जतन से जड़ दूँ उनको तेरे आँचल में,
फूल चमन के सारे चुनकर–
बिखरा दूँ तेरे आँगन में।
तेरा चमकना, तेरा गमकना मुझको भाता है ..........जब ख़याल...........।
इन्द्रधनुष के रंग चुरा कर तेरे जीवन में भर दूँ,
तेरी श्यामल काया को मैं सतरंगी कर दूँ।
तेरे संपुट ओठों को अपने ह्रदय रक्त से रंग दूँ,
तेरे रक्तिम अधरों को मैं और लाल कर दूँ।
तेरे आगे मेरे मन में नहीं कोई टिक पाता है..........जब ख़याल..............।
तेरे उलझे बालों में उलझ गया मेरा जीवन,
तेरे नयन कटारों से घायल हुआ मेरा तनमन ।
कौन घड़ी में नयना तुमसे टकराये,
नहीं रात को नींद चैन दिन में आये।
उठती रहती है टीस जिगर में दिल मेरा घबराता है............जब ख़याल.....।
करूँ कौन जतन तुमको पाऊँ,
मैं कुछ सोच नही पाऊँ।
ओ कमल नयन ओ चंद्रमुखी,
तू कर नहीं मुझको और दुखी।
क्या नहीं समझती दुखियों की आह से सब जल जाता है..........जब ख़याल ....।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 



चित्र गूगल से साभार