Sunday 26 July 2015

बहुत सो लिये

बहुत सो लिये और न अब,
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ो।
करदो भ्रष्टों को आगाह,
और उनकी बाँह मरोड़ो।
      नोंच नोंच कर सम्पदा देश की,
      अपने भंडार भरे हैं।
      दिखला कर जनता को सब्जबाग,
      पूरे अपने स्वार्थ करे हैं।
कर दिये गहरे घाव मनों में,
अब और कचोटना छोड़ो....................... बहुत सो लिये......।
       देश पर हैं अनेक अपकार तुम्हारे,
       जाति धर्म का दुष्प्रचार कर मतभेद उभारे।
       आग लगा कर क्षेत्रवाद की,
       बहुतों के घर-वार उजाड़े।
अब नहीं कोई चाल चलेगी,
ओ गद्दारो, चोरो....................... बहुत सो लिये................ ।
        देश की सेवा करने को नेतृत्व थमाया था,
        लूट खसोट करने को नहीं मान्यनीय बनाया था।
        अब सब बापस करना होगा,
        भ्रष्टाचार से जो धन माल कमाया था।
भूखी रही देश की जनता,
तुमने भरे करोड़ो....................... बहुत सो लिये................ ।
         लाकर युवकों को राजनीति में, अपने रंग जमाये,
         देकर उनको संरक्षण बाहुवली, दबंग बनाये।
         करके उनको गुमराह कई बार,
         साम्प्रदायिक दंगे करवाये।
नहीं शरमाते नफरत फैलाते,
काले मन के देसी गोरो....................... बहुत सो लिये.........।


जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Friday 17 July 2015

मन के वातायन

मन के वातायन-दरवाजे खुले हुये हैं आ जाओ,
पलक पाँवड़े बिछे हुये है आ जाओ। 
               मैंने अंसुवन की लड़ियों से –
               वन्दनवार सजाया है,
               अपनी साँसों की खुशबु से-
               मन उपवन महकाया है। 
उम्मीदों के चिराग से-
रोशन है पथ आ जाओ।............मन के वातायन .... । 
               रटते रटते नाम तुम्हारा –
               अटक गई मेरी साँसे,
               देखते देखते राह तुम्हारी–
               थक गई हैं मेरी आंखें। 
हो गई इन्तेहा इन्तजार की –
आ जाओ। .................मन के वातायन............. । 
               मौसम की हवायें आकर-
               मुझको तड़पाती है। 
               धू धू कर जल उठता है दिल,
               विरह के शोले भड़काती हैं । 
पड़े फफोले विरहानल के–
आकर सहला जाओ ...........मन के वातायन...... ।
               झाँक कर वातायन से-
               चिढाता है मयंक। 
               मैं हूँ साथ चाँदनी के-
               नहीं तुम साजन के संग। 
तुम्हें कसम है प्यार की–
अब आ जाओ...........मन के वातायन...... ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा