Thursday 14 May 2015

चीनी राष्ट्राध्यक्ष का भारत दौरा

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आये हैं,
अपनी सुन्दर पत्नी मादाम पेंग लियुआन को साथ लाये हैं।
भारत को सपेरों का देश मानकर,
बैरलों में ड्रैगन का विष लाये हैं।
स्वागत सत्कार भारतीय परम्परा है,
मेहमानों का दिल जीतने को-
सुन्दर गीत का अंतरा है।
प्रस्तुतीकरण के विभेद से,
कभी आम कभी संतरा है।
अब यह भारतीय कर्णधारों पर निर्भर है,
कैसे उस विष को अमृत बनाते हैं।
चीनियों की नीति को कैसे देश हित में,
उपयोग में लाते हैं।
चीनी नीति जानने को,
अतीत में जाना होगा।
चीनी पी एम चाऊ एन लाईस के दौरे को,
ध्यान में लाना होगा।
तब भी चीन नेता के स्वागत में,
पलक पांवड़े बिछाये गये थे।
हिन्दी चीनी भाई भाई के,
नारे खूब लगाये गये थे।
कुछ ही महीनों बाद चीन ने,
भारत पर युद्ध थोप दिया था।
प्रगति पथ पर बढते भारत को,
उसने रोक दिया था।
देश के कर्णधारों से,
मुझको यह कहना है।
खूब करो आव-भगत मगर,
सतर्क चीनी चालों से रहना है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा    


                              

Saturday 9 May 2015

मैं किस प्रकार अपने पापों का प्रायश्चित करूँ ?

आसन्न प्रसवा गाय हो रही थी बेदम,
निकली पड़ रहीं थी उसकी आँखें और बह रहे थे अश्रु-
तीव्र प्रसव वेदना से।
इठ रहा था उसका शरीर और वह देख रही थी इधर उधर–
असहाय सी।
प्रसव पूर्ण होने से पूर्व वह डकरा उठी तेज आवाज़ में-
और पड़ रही होकर निढाल।
घबड़ाकर मैंने बंद कर लीं अपनी आँखे।
अचानक कौंध उठा एक चेहरा मेरे मस्तिष्क में,
वह चेहरा था मेरी माँ का।
वह माँ जिसे मैं झिड़क देता था बात बात पर,
कर चुका था मैं अनेक बार उसका तिरिस्कार।
वह बिना कोई प्रतिवाद किये, आँखों से अश्रु पौंछते हुये-
हट जाती थी वहाँ से।
मुझे होने लगी अपने आप से नफरत।
मै सोच रहा था मेरी माँ ने भी उठाया होगा कष्ट–
इसी प्रकार।
पी होगी वो भी तीव्र वेदना से और डकराई होगी–
मुझे जनमते समय।
माँ, ओ मेरी माँ मुझे कर देना क्षमा मेरी कृतघ्नता के लिये,
अथवा देना मुझे कठोर दंड मेरी उद्दंडता के लिये।
लेकिन मुझे पता है तू ऐसा कुछ नही करेगी।
मै किस प्रकार अपने पापों का प्रायश्चित करूं?
जयन्ती प्रसाद शर्मा