Saturday 14 February 2015

वैलेन्टाइन डे

बाजार में देखकर युवक युवतियों की भीड़,
करते देखकर खरीदारी भेंट में दी जाने वाली बस्तुओं की,
मैं रोक न सका अपनी जिज्ञासा,
मुझे बताया गया आज है वैलेंटाइन डे।
इस दिन प्रेमी प्रेमिका करते हैं इजहार अपने इश्क का।
लेते-देते हैं भेंट, मुख्यत प्रेम के प्रतीक गुलाब का।
मुझे हुआ मलाल हमारे समय में न थी कोई ऐसी परम्परा,
न था कोई दिन निश्चित प्रेम के प्राकट्य का।
ग्लानि हुई मैंने पत्नी से न किया कभी इजहारे इश्क,
न दी कोई भेंट।
भावावेश में मैंने खरीद लिया एक सुर्ख लाल गुलाब।
पहुँच कर घर प्रफुल्ल मन से पत्नी को बुलाया,
आज कहूँगा इलू इलू मैंने उसे बताया,
और करने का गुलाब पुष्प अर्पित, अपना मनतब्य बताया।
सुनकर वह भड़क गयी घोड़ी सी।
झपटकर छीन लिया गुलाब का फूल, फेंक कर एक ओर मुझे घुढ़काया
बोली बुढ़ापे में छिछोरी हरकत से बाज आइये,
जाइये बाजार से सब्जी के लिये एक अच्छा सा,
गोभी का फूल लेकर आइये।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 







Monday 2 February 2015

माँ शारदे वर दे

वर दे,
माँ शारदे वर दे !
गौर वर्णा, धवल वसना,
श्वेत शतदल राजती।
बुद्धि सुधारिन, विद्दया दायिन, 
कर में पुस्तक धारती।
सुप्तजनों को जाग्रत करने, 
माँ वीणा की झंकार कर दे ... ... वर दे माँ ... ...।
ज्ञान दीप प्रदीप्त कर,
तम ह्र्दय का नष्ट कर। 
विद्दया के प्रसार से,
अज्ञानता को दूर कर।
ज्ञान के प्रकाश से-
माँ मन मेरा आलोकित कर दे ... .. वर दे माँ ... ...।

जयन्ती प्रसाद शर्मा