Saturday 27 September 2014

मेरे विचार आवारा बादल से

मेरे विचार आवारा बादल से आते जाते रहते हैं,
कभी घने हो जाते हैं कभी छितरा जाते हैं।
कभी बहुत  ऊँचा उठ जाते,
लोग समझ नहीं मुझको पाते।
गूढ़ विचारक नहीं कोई मुझसा,
अक्सर भ्रम में वे पड़ जाते।
मेरे इस अदने से कद को बहुत बढ़ा जाते हैं.............मेरे विचार.....।
शुभ्र बदली से दिखते कभी,
शुभ विचार कहते सभी।
कभी दिखते काले बादल से,
निकले हो दल दल से जैसे अभी।
मेरे विचारों से ही लोग मुझे ऊँचा-नीचा कह जाते  हैं..मेरे विचार.....।
कभी पलायनवादी हो जाते,
हिंसक लोगों से मुझे जुड़ाते।
बातें समानता की करने से,
साम्यवादी मुझे बनाते।
नहीं समझ मुझे किसी वाद की पर वादों में उलझाते हैं...मेरे विचार..।
स्थिर नहीं रहते मेरे विचार,
राजनीति, कभी धर्मनीति का करते प्रचार।
कभी लोभ में पड़कर अनीति के,
बन जाते है पक्षकार।
अवसर की रहने से तलाश में, अवसरवादी मुझे बनाते हैं..मेरे विचार..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday 19 September 2014

मेरी बारी कब आयेगी?

मेरी बारी कब आयेगी?
लोग आते हैं करते है सिद्ध औचित्य अपनी त्वरितता का-
और मै उन्हें अपने से आगे जाने का रास्ता दे देता हूँ। 
कुछ लोग कातर दृष्टि से देखते हुये, बने हुये दीनता की प्रतिमूर्ति, 
कर जाते है मुझे बाईपास-
और मै खड़ा हुआ देखता रह जाता हूँ। 
कोई अपनी धूर्तता और लेकर दबंगई का सहारा, 
मुझे धकियाता हुआ, मुस्कराकर आगे बढ़ जाता है। 
मै लटकाये हुये गले मे सिद्धांन्तों का ढोल, 
आज भी खड़ा हुआ हूँ वहीँ जहाँ था वर्षों पहले, 
सोचता हुआ, मेरी बारी कब आयेगी ?

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday 9 September 2014

उनसे मेरी बंदगी है

उनसे मेरी बंदगी है, दुआ है, सलाम भी है,
नमस्ते है, जुहार है, राम राम भी है।
न कोई लेने जाता है,
न कोई देने आता है।
हमारे बीच बस-
इंसानियत का नाता है।
वे नहीं मेरे कोई मै नहीं उनका कोई,
पर उनकी हर खैर ओ खबर-
मेरी ख़ुशी को पयाम भी है.......... उनसे मेरी................. ।
हर किसी की जिन्दगी खुशहाल हो,
न किसी को कोई रंज-ओ-मलाल हो।
हो पुर सुकून अवाम सब-
और गमों से नहीं कोई बेहाल हो।
मैं नहीं जानता साधना, आराधना,
पर कामना हर किसी के उत्कर्ष की-
मेरी राह भी है मुकाम भी है.......... उनसे मेरी................. ।
न कोई अपना है न पराया है,
हर किसी में रब समाया है।
कर सके तो कर खिदमत हर इन्सान की-
क्यों कि आनी जानी यह माया है।
माया पर न इठला, पाकर न इसे इतरा,
यह आते हुये देती है सुख, जाते हुये देती है दुख-
और कर देती गुमनाम भी है.......... उनसे मेरी................. । 


जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday 1 September 2014

बड़े प्यार से मिलते हैं

वे जब भी मिलते हैं बड़े प्यार से मिलते हैं।
मैं भी उन्हें सम्मान देता हूँ-
बड़े भाई सा।
लेकिन उन्होंने किया है मेरा उपयोग सदैव-
एक मोहरे की तरह।
वे जब मेरा जैसा उपयोग चाहते हैं,
मुझे इंगित कर देते हैं और मैं उनकी चाहत जैसा-
व्यवहार करने लगता हूँ।
भीड़ में कर लेता हूँ उनके चरण स्पर्श।
मेरे चरण स्पर्श करते ही लोगों का लग जाता है ताँता-
उनके चरण स्पर्श करने को।
उनके इशारे पर, जब वे उचित समझते हैं,
मैं उन्हें पहना देता हूँ फूलों का हार-
और वहाँ फूलों के हारों का ढेर लग जाता है।
आवश्यकता पड़ने पर मैं उनका नाम लेकर-
जोर जोर से जिंदाबाद के नारे भी लगा देता हूँ।
प्रत्युत्तर में उनके जिंदाबाद के नारों से-
परिसर गुंजायमान हो जाता है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा