Wednesday 27 August 2014

मेरी चाह

साहित्य समाज का दर्पण है-
और समाज मनुष्य के व्यक्तित्व का कृतित्व का। 
मैं इस कद्दावर समाज में, साहित्य में प्रतिबिम्ब उसके बिम्ब में,
मैग्नीफाइंग ग्लास की मदद से भी नहीं ढूँढ़ पाता हूँ-
अपना बजूद। 
काशः समाज में साहित्याकाश में मेरा भी होता अस्तित्व-
भले ही एक बिन्दु सा। 
उम्र के इस पड़ाव पर मेरी यह चाहत-
बेवक्त शहनाई बजने जैसी ही है। 
इस इन्द्रिय शैथिल्य के समय में,
मैं अपनी प्रकम्पित टांगों पर कैसे खड़ा हो सकूँगा-
उचक सकूँगा दिखाने को अपना चेहरा। 
बिना किसी संबल के यह संभव नहीं है। 
कौन माननीय मुझे कंधे पर बैठाकर, उचककर-
मुझे स्थापित करने का करेगा सात्विक प्रयत्न। 
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Thursday 14 August 2014

आ गया पन्द्रह अगस्त

आ गया पन्द्रह अगस्त,
हुआ इसी दिन कभी न होने वाला-
ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त .......आ गया......।
गाँधी जी ने फूका मंत्र,
बहुत बुरी है पराधीनता,बुरा है भारत में परतंत्र।
जगी चेतना जन मानस की,
सब लगे चाहने होना स्वतंत्र।
अंग्रेजो भारत छोड़ो की हुंकार पर–
हो गये अंग्रेजों के हौसले पस्त  .....आ गया....।
जनता की दहाड़ पर अंग्रेजों ने–
जाने की तैयारी कीनी,
पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को
भारत को सत्ता दीनी।
शासन सँभालने की तैयारी में–
कर्णधार देश के हो गये व्यस्त ...आ गया.....।
अंग्रेजों का हुआ पराभव ,
हुआ स्वराज्य का भारत में उद्धव।
हुई दिवाली सी घर घर में,
हरजन मना रहा था उत्सव।
लाल किले पर देख तिरंगा-
भारत वासी हो गये मस्त    ......आ गया......।
मदमस्त नहीं तुम हो जाना,
मत सपनों में खो जाना।
दुश्मन की मीठी बातों से–
कर्तव्य विमुख मत हो जाना।
तुम भावी कर्ण धार देश के –
कर देना दुश्मन की हर चाल ध्वस्त......आ गया........।


जयन्ती प्रसाद शर्मा 


Wednesday 13 August 2014

जश्न-ए-आजादी में भूल ना जाना

जश्न-ए-आजादी में भूल न जाना,
घात लगाये बैठे दुश्मन, तुमको उनसे देश बचाना।
कुछ सहमे कुछ डरे हुये हैं,
कुछ ईर्ष्या से जले हुये हैं।
प्रेम प्रपंच का ओढ़ लवादा,
विषधर आस्तीनों में छिपे हुये हैं।
बिना निरख के बिना परख के–
मत ऐरे गेरे को गले लगाना  .........घात  लगाये........।
हमने देश की आजादी,
नही दान में पाई है।
इस एक खुशी के बदले–
लाखों ने जान गँवाई हैं
हर पल हरदम रहना चौकस पड़ गलफ़त में-
नहीं भुलाना               ...........घात  लगाये........।
घर घर खुशियों के दीप जले हैं,
भोली आँखों में स्वप्न पले हैं।
हर मुख पर मुस्कान खिली है,
देश को नयी पहचान मिली है।
बनी रहे पहचान देश की-
सतत् प्रयत्न तुम करते जाना    ......घात  लगाये.......।
यह धरती वीर शहीदों की है,
गाँधी,सुभाष,भगत सिंह की है।
नेहरु शास्त्री ने इसे संवारा,
विश्व-पटल पर देश उभारा।
देखो शान न जाये इसकी–
पड़ जाये चाहे जान गँवाना   .............घात लगाये.......।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

चित्र गूगल से साभार  


Tuesday 5 August 2014

सावन मन भावन आयौ

सावन मन भावन आयौ।

रुक रुक कर बहती पुरवाई,
अलसित कामिनी ले अँगड़ाई।
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे,
पिया मिलन को विरहन तरसे,
वैरी पपीहा आग लगावत-
पिहू पिहू कौ शोर मचायौ............................... सावन मनभावन.............।
कोयल कूक रही मतवाली,
फूल खिले हैं डाली डाली।
नाचत मोर मगन उपवन में,
उठत हिलोर हर्ष की मन में।
बरसे नेह रस अम्बर सौ-
सब जग में सरसायौ............................... सावन मनभावन.............।
दमक दमक कर दमके दामिन,
मेघ मल्हारें गावैं भामिन।
पड़ गये झूले अमवा की डाली,
झूला झूल रहीं मतवाली।
कर सोलह श्रंगार कामिनी-
सावन सगुन मनायौ............................... सावन मनभावन.............।
संग सहेली झूला झूलें विरहन के मन उठती हूलें।
कभी अन्दर कभी बाहर आवै,
पर साजन बिन चैन न पावै।
खिल गई कुंद-कली सी सजनी,
जब मनभावन साजन आयौ............................... सावन मनभावन.............। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा 
चित्र गूगल से साभार       
     

Friday 1 August 2014

मेरा भारत देश महान

मेरा भारत देश महान-
कर रहा है प्रगति,
हो रहा है चौमुखी विकास यहाँ।
औधौगिक, वैज्ञानिक, कृषि आदि के साथ साथ-
छोटे, बड़े स्तरीय घोटाले-
हो रहे हैं बड़ी दक्षता से।
इनकी दर देखते हुये लगता है घोटालों के क्षेत्र में देश-
शीघ्र ही हो जायेगा आत्मनिर्भर।
यहाँ से हो सकेगा घोटालों का निर्यात।
संस्तुति है, इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वालों को-
उचित धिक्कारालंकरणों से नवाजा जाय।
किया जाय उनका नागरिक निन्दन,
की जाय उन पर सड़े अण्डों और टमाटरों की बरसात-
और पहनायें जायें उन्हें जूतों के हार।
जयन्ती प्रसाद शर्मा