चिलचिलाती दुपहरी में,
आग बरसाती तिजहरी में।
मैं झूम-झूम जाता था-
क्योंकि वह मेरे साथ थी।
खार फूल लगते थे,
नजारे अनुकूल लगते थे।
मैं हँसता था मुस्कराता था,
क्योंकि उस मिलन की अलग बात थी।
चन्दा की चाँदनी,
लगती थी सुहावनी।
हम नाँचते थे गाते थे-
क्योंकि वस्ल की वह रात थी।
कुछ बात ऐसी हो गई,
वह मुझसे दूर हो गई।
बदल गये नजरिया नजारे-
क्योंकि वह बेबफा नहीं पास थी।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
आग बरसाती तिजहरी में।
मैं झूम-झूम जाता था-
क्योंकि वह मेरे साथ थी।
खार फूल लगते थे,
नजारे अनुकूल लगते थे।
मैं हँसता था मुस्कराता था,
क्योंकि उस मिलन की अलग बात थी।
चन्दा की चाँदनी,
लगती थी सुहावनी।
हम नाँचते थे गाते थे-
क्योंकि वस्ल की वह रात थी।
कुछ बात ऐसी हो गई,
वह मुझसे दूर हो गई।
बदल गये नजरिया नजारे-
क्योंकि वह बेबफा नहीं पास थी।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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