Thursday 22 May 2014

मुझे साजन के घर जाना है

मुझे साजन के घर जाना है।
आओ शीलू, नीलू आओ तुमने मुझे सजाना है।.......मुझे साजन.......।
करना मेरा षोडश श्रृंगार,
जायें सजन दिल अपना हार।
भूल जायें आंखें झपकाना-
अनुपम सौन्दर्य मेरा निहार।
यत्नपूर्वक केश विन्याश कर–
जूड़ा रुचिर बनाना है............................मुझे साजन..........।
भौहें हो ऐसी बनी हुई,
जैसे कमान हो तनी हुई।
बिंदी लाल भाल पर हो,
कृत्रिम तिल एक गाल पर हो।
लटक जाये जिसमें उनका मन–
उलझे बालों की लट ऐसे लटकाना है......मुझे साजन..........।
मेरे हाथों में मेंहदी लगवा दो,
स्वर्णाभूषण मुझको पहना दो।
अंगराज मेरे अंग लगा कर,
तन मन मेरा महका दो।
भूल जायें सुधि अपने तन की–
मुझे मन उनका गमकाना है.................मुझे साजन...........। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा